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जीवन की आपाधापी में 5 Nov 2006 | 01:09 am

जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला। जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में, हर एक यहाँ पर ए...

था तुम्हें मैंने रुलाया! 4 Nov 2006 | 10:36 pm

हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा! हाय, मेरी कटु अनिच्छा! था बहुत माँगा ना तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया! था तुम्हें मैंने रुलाया! स्नेह का वह कण तरल था, मधु न था, न सुधा-गरल था, एक क्षण को भी, सरलते, क्यों स...

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