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Latest News:

कान्हां ने धूम मचाई 27 Aug 2013 | 06:52 am

14.00 पहन कर पीली कछौटी ओढी काली कमली मोर मुकुट शीश पर सजाया लाठी हाथ में ले कर  | वन में जा कर धेनु चराई फिर बंसी बजाई रास रचाया कान्हा ने धूम मचाई वृन्दावन की गलियों में | चुपके से ऊपर चढ़ .....

क्यूं सुनाऊँ मैं 23 Aug 2013 | 04:30 pm

14.00 क्यूं सुनाऊँ मैं तुम्हें उसकी व्यथा कथा तुमने कभी उससे प्यार किया ही नहीं | कुछ अंश ममता का उससे बांटा  होता नजदीकियां बढ़तीं यूं अलगाव न होता | ऐसे ही नहीं वह सबसे दूर हो गयी प्यार की...

राखी 20 Aug 2013 | 08:31 am

(१) यह शगुन साध का धागा किसी पर थोपा नहीं गया केवल प्यार का बंधन है यूं ही बांधा नहीं गया | (२) रिश्ता तो रिश्ता है हो चाहे बंद लिफाफे में या राखी भाई की कलाई में पर रहे सदा ही वरदहस्त बहना क...

है आज सूनी कलाई 18 Aug 2013 | 06:38 pm

14.00 है आज सूनी कलाई बहिन तू क्यूँ नहीं आई कितना प्यार किया तुझको फिर भी भूल गयी मुझको | किस बात पर रूठी है बताया तो होता मैं सर के बल चला आता तुझे लेने के लिए | तेरी ममता की डोर इतनी कच्च....

वारिध 15 Aug 2013 | 12:08 pm

 वारिध जल से भरा ,डोल रहा चहु ओर | होगी जाने कब वर्षा ,अब कोइ ना ठौर  || बरस बरस वारिध  थका ,चाहता अब विश्राम | यूं तो दामिनी दमकी ,पर आई ना काम  || हरी भरी धरती हुई ,खुशियों का है दौर | किससे क्...

वीर सपूत 12 Aug 2013 | 04:45 pm

रहा एक ध्येय तेरा अपनी सरहद की रक्षा करना है नमन तुझको जीवन देश हित उत्सर्ग किया | है धन्य  वह माँ जिसने तुझे जन्म दिया देश हित में जीने की दी अद्भुद शिक्षा  | घुसपेठ होते ही तूने जी जान...

क्या से कया हो गयी 10 Aug 2013 | 10:37 am

14.00 घुली मिली जल में चीनी सी सिमटी अपने घर में गमले की तुलसी सी रही शोभा घर आँगन की | ना कभी पीछे मुड़ देखा ना ही भविष्य की चिंता की व्यस्तता का बाना ओढ़े मशीन बन कर रह गयी | हर पल औरों के लि...

जीवन सुनहरी धूप सा 7 Aug 2013 | 07:39 pm

14.00 जीवन सुनहरी धूप सा हरीतिमा पर छाता जाता त्याग और समर्पण की सौगात साथ में लाता | साथ यदि इनका ना होता वह अकारथ हो जाता सदा असफल रहता आत्म विश्वास न जग पाता | माँ की ममता ,पिता का प्यार ...

वादे 5 Aug 2013 | 06:40 am

14.00 तरह तरह के फूल खिले लोक लुभावन वादों के बनावटी इरादों के झरझर झरे टप टप  टपके बिखरे देश के कौने कौने में पर एक भी न छू पाया परमात्मा के चरणों को रहे दूर क्यूं कि थे वे कागज़ के फूल सत्य...

क्षण परिवर्तन का 3 Aug 2013 | 06:26 am

14.00 व्यस्तता भरे जीवन में वह ढूंड़ता सुकून खोजता बहाने हंसने और हंसाने के | भौतिकता के  इस युग में समय यूं ही निकल जाता पर हाथ कुछ भी न आता एक दिन ठीक दिखाई देता दूसरे दिन चारपाई पकड़ता अधिक...

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सपना टूट, कंचन, मेरे बिना, प्यार, पक्षियों की स्वतंत्रता पर कविता

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