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Untitled 27 Aug 2013 | 10:51 am

थियेटर की सुप्रसिद्ध कलाकार विभा रानी के 'सोलो' नाटक 'नौरंगी नटिनी'की दिल्ली में प्रस्तुति के ठीक बाद.......विभा जी और इस नाटक के सुविख्यात निर्देशक श्री राजेन्द्र जोशी के साथ.......

कभी मुंतज़िर चश्में...... 30 Apr 2013 | 05:06 pm

कभी मुंतज़िर चश्में ज़िगर हमराज़ था, कभी बेखबर कभी पुरज़ुनू ये मिजाज़ था, कभी गुफ़्तगू  के हज़ूम तो, कभी खौफ़-ए-ज़द कभी बेज़ुबां, कभी जीत की आमद में मैं, कभी हार से मैं पस्त था. कभी शौख -ए-फ़...

नीम के पत्ते यहाँ ........ 20 Mar 2013 | 05:14 pm

नीम के पत्ते यहाँ दिन-रात गिरकर, चैत के आने का हैं आह्वान करते, रात छोटी,दोपहर लम्बी ज़रा होने लगी है। पेड़ से इतने गिरे पत्ते कि  दुबला हो गया है नीम जो पहले घना था, टहनियों के बीच से द...

चाय...... 27 Feb 2013 | 12:18 pm

आज सुबह में चाय नहीं कुछ ठीक बनी थी, दूध ज़रा ज्यादा था या कि चीनी खूब पड़ी थी या फिर शायद उलझन कोई मन में हुई खड़ी थी, आज सुबह में चाय नहीं कुछ ठीक बनी थी. चाय की पत्ती कम थी या कि रं...

सूरज की पहली किरण से........ 13 Feb 2013 | 01:11 am

सूरज की पहली किरण से नहाकर तुम और गूँथकर चाँदनी को अपने बालों में ,मैं चलो स्वागत करें , ऋतु-वसंत का ....... आसमान की भुजाओं में थमा दें , पराग की झोली और दूर-दूर तक उड़ायें , मौसम का गुलाल. रच लें हथ...

ऋतुराज वसंत की गलियन में ......... 5 Feb 2013 | 11:30 am

यह कविता लगभग पच्चीस-तीस साल पहले, अपनी बेटियों को जगाने के लिए लिखी थी, हर साल वसंत- ऋतु में ज़रूर मन में घूमने लगती है....... ऋतुराज वसंत की गलियन में कोयल  रस-कूक   सुनावत हैं, अधरों  पर   राग-विह...

छः वर्ष के बच्चे के .......हाथों से जब 20 Jan 2013 | 11:37 am

अपने ' nephew' के नाम.....जो विभिन्न उपलब्धियों को हासिल करते हुए , वाशिंगटन में 'World-bank' के एक प्रतिष्ठित पद पर आसीन हैं . हाल ही में उनका एक भाषण सुनने को मिला....... Sanjay Pradhan: How open d...

तुम्हारे साथ बीते वे पल .... 15 Jan 2013 | 11:12 am

तुम्हारे साथ बीते वे पल .... मैं कहती उन्हें ठंढी हवा का एक झोंका..अगर जेठ की दुपहरी होती पर अगहन-पूस की शाम में, ठंढी हवा शीत-लहरी होती है, राहत  नहीं पहुँचाती सूई सी चुभोती है..इसीलिए बदलनी होगी पुर...

रोज़मर्रा की छोटी-छोटी बातों में...... 31 Dec 2012 | 12:54 pm

रोज़मर्रा की छोटी-छोटी बातों में जब ढूँढने लगी खुशियाँ तो लगा...... खुशियों की कोई कीमत नहीं होती, रद्दी से मिले एक सौ अस्सी रूपये में खुशी  होती है, मटर पच्चीस से बीस का किलो हो जाये खुशी होती है, 'स...

कहते हैं माँ-बाप आजकल...... 28 Dec 2012 | 11:43 am

कहते हैं माँ-बाप आजकल...... बड़े होशियार हैं मेरे बच्चे, सारे 'पोयम्स' याद हैं इन्हें 'बाई -हार्ट', 'चैम्पियन'हैं 'स्विमिंग' के, हर बार 'फर्स्ट' आते हैं 'क्लास' में. 'गिटार' बजाते हैं, 'पियानो' बजाते ...

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