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आश्रित नागरिक देश क्या गढ़ेंगें 4 Aug 2013 | 05:35 pm

लोक लुभावन बातें और बहुत कुछ मुफ़्त बाँटने का प्रयोजन |   हर बार यह होता है और चुनाव जीत भी लिए जाते हैं |  पर  इस खेल में  देश की जनता हार जाती है |  जनता जो हर बार पारजित हो, आश्रित और आश्रित बनती ज...

पीड़ा जब हिस्से आती है 31 Jul 2013 | 08:31 am

पीड़ा जब हिस्से आती है एकाकी यात्रा नहीं करती बहुत कुछ अनचाहा, अनपेक्षित संग आता है उसके जो लाता है, कभी सब कुछ खंडित कर देने वाला जटिल चक्रवात तो कभी अपनी ही शक्ति के संचय की  सुध और क्षमता पीड़ा  कभ...

जीवन का कोई मोल नहीं 20 Jul 2013 | 04:55 pm

सड़क, स्कूल या घर का आँगन हमारे यहाँ सबसे सस्ती चीज़ अगर कोई है तो वो है जीवन । कोई घटना या दुर्घटना हो जाय उसे भूलने और फिर दोहराने में कोई हमारी बराबरी नहीं कर सकता  । इतना ही नहीं किसी बड़ी से बड़ी...

शब्दों का साथ खोजते विचार 14 May 2013 | 04:54 am

कह पाना जितना सरल है भावों और विचारों को शब्दों के रूप ने लिख पाना उतना ही कठिन । जाने कितनी ही बार यह आभास हुआ है कि विचारों का आवागमन जारी रहता है  पर शब्द जाने कहाँ अपनी ही मौज में खोये होते हैं । ...

विस्मृति का सुख 8 May 2013 | 06:18 am

विस्मृति की अनिवार्यता के अर्थ वो ही समझता है जो प्रतिदिन जाता है उन पगडंडियों तक जिन पर सुखद स्मृतियाँ बिखरी पड़ी हैं और प्रतीक्षारत खड़े हैं दुखद क्षण भी जो मिटते ही नहीं न ही धुंधले होते हैं बीतते ...

पुरुष की नकारात्मक प्रवृत्ति का शिकार अंततः एक स्त्री ही बनती है- एक अवलोकन 27 Apr 2013 | 09:55 am

हमारी सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था ही कुछ ऐसी है कि एक स्त्री का जीवन केवल उसके अपने नहीं बल्कि घर पुरुषों के व्यवहार से भी प्रभावित होता है ।  निश्चित रूप से इन मामलों के कुछ अपवाद भी हमारे परिवेश म...

हे राम...बेटियों के वंदन और मानमर्दन का कैसा खेल 20 Apr 2013 | 12:27 pm

खो ना जाये मनुष्यता आज मन बहुत व्यथित है । एक पांच वर्षीय बच्ची के साथ हुयी पाशविक घटना के बारे में जानकर । सच, मन दहला देने वाला परिदृश्य प्रस्तुत कर रहा है आज के दौर का समाज । बेटियों का आगे बढ़ना ...

गुम हुईं मानवीय संवेदनाएँ 17 Apr 2013 | 05:37 am

यूँ तो हमारी संवेदन हीनता से हमारा साक्षात्कार प्रतिदिन किसी न किसी समाचार पत्र की सुर्खियाँ करवा ही देती हैं पर कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं कि पूरे समाज की मानवीय सोच पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाता है । आजकल ...

मेरा मानवीय कद 8 Apr 2013 | 07:13 pm

चैतन्य तुम बड़े हो रहे हो सीख गए हो जूते के फीते बांधना साथ ही अपनी बातों को साधना आ गयी  है तुम्हें मन की कहने, मोह लेने की अद्भुत कला जुटा लेते हो कितनी ही ऊर्जा हर दिन चेतना जगाता चैतन्य अभिनव सी...

फोन स्मार्ट और यूज़र स्लो 6 Apr 2013 | 12:43 pm

एक समय था जब कई सारे फोन नंबर मौखिक याद थे । इतना ही नहीं कई पते ठिकाने और अन्य आम जीवन से जुड़ी जानकारियां सहेजने को मस्तिष्क स्वयं ही तत्पर रहा करता था । कभी इसके  लिए विशेष श्रम भी नहीं करना पड़ता ...

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