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Latest News:

दीपुआ का बनेगा..? 18 Sep 2012 | 07:45 am

मास्साब- अरे गोपिया, ई त बता, के रबरी देबी, राहुल गांधी, मधु कोड़ा औ मनमोहन सिंह, ई सबमे एगो कौमन आ मेन फेक्टर का है ?? गोपिया - मास्साब, सबके सब गोबर हैं..उहो गाय के नै गदहा के, न लीपे जोग, न पोते जो...

आदर्शवादी .. 1 May 2012 | 02:03 am

घबराए आवाज में बुचिया ने मून बाबू को हंकारा लगाया- "ओ भैया, दौड़ के आओ हो,देखो तो मैया को का हो गया.." मून बाबू हड़बडाये दौड़ के आँगन में पहुंचे तो देखा मैया का केहुनी रगडाया हुआ है और माथे पर भी गूमड़...

गुहार ... 12 Mar 2012 | 04:39 pm

पिता भाई ने विदा किया था, अबकी डोली तुम उठवाना. पहले मुझको विदा कराके, घर सहेजकर फिर तुम आना. दाम्पत्य की गरिमा हेतु, सप्त पदी के वचन निभाना, सांसों की लड़ियाँ जब टूटे, विकल न होना गले लगाना.. भरना...

सेलिब्रेशन ऑफ़ डर्टीनेस .. 23 Jan 2012 | 11:17 pm

धूम मची है, नायिका ने किरदार को जीवंत कर दिया है. इसे कहते हैं कला, और कला के प्रति समर्पण..यत्र तत्र सर्वत्र सेलेब्रेशन हो रहे हैं.मंच शुशोभित गुंजायमान हैं..मंच पर नायिका के अश्लील इशारों,कामुक अदाओ...

जीवन.. 23 Dec 2011 | 11:33 pm

सांस सांस कर चुकती जाती, साँसों की यह पूंजी, जीवन क्यों,जगत है क्या, है अभी तलक अनबूझी.. कभी लगे यह विषम पहेली, अनुपम कभी सहेली, संगसाथ चलने का भ्रम दे, कर दे निपट अकेली. कभी लगे है क्या कुछ ऐसा, जो...

हाथ का साथ .... 8 Dec 2011 | 12:14 am

अईसे काहे बघुआ के, अंखिया तरेर के देख रहा है बे, साला..नंगा..भुक्खर ...??? आ ...समझा !!! ... भूखा है ??? त ई से हमको मतलब..??? सब अपना अपना भाग का खाते हैं... हम भी अपना पुन्न का स्टाक से खा और इतरा ...

न्यायप्रिय राजा .... 16 Nov 2011 | 03:18 am

एक राजा थे, बड़े ही न्यायप्रिय..न्याय करना एक तरह से उनका शौक था,जूनून था,जिन्दगी थी...जबतक दिन भर में सौ, डेढ़ सौ न्याय न कर लेते उन्हें चैन न मिलता,खाना न पचता..कहते हैं, जस राजा तस प्रजा.. उनके विश...

तीस साल का इतिहास... 10 Oct 2011 | 11:42 pm

तीन, साढ़े तीन दशक !!!! बहुत लम्बा समय होता है यह..एक पूरी जन्मी पीढी स्वयं जनक बन जाती है इस अंतराल में.चालीस से अस्सी बसंत गुजार चुके किसी से पूछिए कि इस अंतराल में क्या क्या बदला देखा उन्होंने..समय...

माँ सी... 21 Sep 2011 | 09:54 pm

जब भी कभी हममे से कोई जो दूर हुआ करते थे उससे बात बेबात अक्सर कैसे दलकती थी छाती भरभराई रहती थी आँखें माँ की... पका देती भले वो हर रसोई सब ही के रूचि की, पर उस पल जो न वहां मौजूद होता कहाँ वह...

गोस्वामी जी का युगबोध ... 8 Sep 2011 | 01:03 am

कहते हैं एक बार अकबर ने सूरदास जी से पूछा कि वे और गोस्वामी जी दोनों ही तो एक ही विष्णु के भिन्न अवतारों को मानते हुए कविता रचते हैं, तो अपने मत से बताएं कि दोनों में से किसकी कविता अधिक सुन्दर और श्र...

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