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Latest News:

आम आदमी 18 Aug 2013 | 09:02 pm

तुमको तुम्हारे शहर की सड़कों पर पड़ी , जिन्दा लाशों की कसम मत डालना तुम , इन पर झूठी सहानुभूति का कफ़न इनको यूँही पड़ा रहने दो चीखने दो चिल्लाने दो तुम्हारी सभ्यता की कहानी इनको ही सुनाने दो सड...

शहादत पर सियासत ... 6 Aug 2013 | 09:34 pm

आज सारा भारतवर्ष  शहीदों को अपने अपने अंदाज में श्रद्धांजलि  दे रहा है |  अब प्रश्न  उठता है इनमें से कितने लोग इन्हें कल याद रखेंगे इसका उत्तर  मै आप परछोड़ता हूँ |क्या आपने कभी यह सोचा  जिस परिवार क...

ब्लोगिंग की तीसरी वर्षगाँठ.... 6 Apr 2013 | 09:58 pm

ब्लोगिंग की आखिर तीसरी वर्षगाँठ किसी तरह मना  रहा हूँ ।यूँ  तो इस वर्ष लेखन कुछ खास नहीं हो पाया फिर भी तीन वर्ष पूरे  कर लिए ..... ब्लॉग का व्यौरा कुछ इस प्रकार रहा ... कुल रचनाएँ    १७३  ( एक सौ त...

कवि की मज़बूरी .... 3 Apr 2013 | 09:37 pm

मेरे एक मित्र का फोन आया कि आप तो कवि  हैं एक जल्दी से हमारे विद्यालय के वार्षिक उत्सव पर कविता लिख कर मेल कर दो, समय दिया केबल एक घंटे का ... पत्नी ने धिक्कारा ऐसे तो कवि बने फिरते  हो एक काम नहीं कर...

आज एक ताज़ा ग़ज़ल 3 Feb 2013 | 04:28 pm

ज़िन्दगी की कश्ती में हिम्मत की पतवार होना चाहिए । मोड़  सकते हैं हम तूफानों का रुख, दिल में यह एतवार होना चाहिए। मेरी कश्ती तो टूटी थी जो मौजों में फंस कर डूब गयी । मेरे डूबने पर तूफानो  को नहीं नाज...

शहीदों का सम्मान 14 Jan 2013 | 08:00 pm

आज जब शहीदों के सम्मान की बात चल रही हैं तो मै अपनी बात चार पंक्तियों में रखना चाहता हूँ । यदि इन शहीदों का सम्मान चाहिए । तो एक युद्ध और  घमासान चाहिए । मै कश्मीर सियाचिन नहीं मांगता , मुझको तो पूरा...

एक पिता कि चिन्ता ..... 30 Dec 2012 | 09:28 pm

कूद कर मेरी बेटी का गोद में बैठ जाना गलें  में बाहें डाल कर , कुछ माँगना और हँसकर,मेरा उसकी , मांग को पूरी करना | मगर आज, माँगा है उसने , सलवार और कुर्ता, फ्राक के बदले | क्योंकि वह हो गयी है...

आह्बान ... 7 Dec 2012 | 06:28 pm

चलो उठो उठाओं फावड़े खोदो कब्र कुछ जिन्दा लाशों को दफनाना हैं । धरती का बोझ कुछ कम करना हैं ।

यही सत्य हैं..... 20 Nov 2012 | 06:47 pm

आज बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर आया हूँ ।अपनी एक पुरानी  रचना ले कर , जो मेरी पसंद की हैं । आशा करता हूँ आपको भी पसंद आएगी । यही सत्य हैं.... झाँक कर देखा खिड़की से उमड़ते हुए बादलों को दौड़ कर आँगन...

सन्यासी का धर्म .... 3 Oct 2012 | 05:43 pm

एक बार एक नदी के किनारे दो सन्यासी अपनी पूजा पाठ में लगे हुए थे । उन सन्यासी में से एक ने गृहस्थ जीवन के बाद सन्यास ग्रहण किया था जबकि दूसरा बाल्य अवस्था से ही सन्यासी था। उन्होंने देखा की एक स्त्री ...

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गज़ल, पहेली, परिचय, मेरा परिचय, कितने बिस्तरों में कितनी बार’, धनुष

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