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तमन्ना के रेगिस्तान... 25 Jul 2013 | 02:41 pm

तमन्ना के रेगिस्तान में उड़ते हैं रेत के बादल गुबारों के बवंडर में मैं अब फंसना नहीं चाहत ग़में इश्क ने सोखा है मेरे जज्बात का चश्मा हसरतों के झरने में मैं अब बहना नहीं चाहती

पॉलिथीन विरोधी अभियान.... 22 Jul 2013 | 09:00 pm

कल पॉलिथीन विरोधी अभियान के तहत चांदनी चैक स्थित हरि राम और लक्ष्मी गणेश अपार्टमेंट में गई और वहां सारे घरों से पॉलिथीन एकत्र किये. फिर शपथ ली कि आगे से पॉलिथीन का प्रयोग नहीं करेंगे... (

बादलों का एक भी टुकड़ा... 16 Jul 2013 | 03:58 pm

बादलों का एक भी टुकड़ा नहीं बचा आंखों में सावन-भादों में बनाए बांधों के द्वार खोल दिये हैं मैने अंतर में बसी भागीरथी विलुप्त हो गई है सरस्वती-सी पंछियों ने भी ढूंढ लिया है नया बसेरा शाखों से पत...

पॉलिथीन विरोधी मुहिम..... 15 Jul 2013 | 05:03 pm

पॉलिथीन विरोधी मुहिम के तहत कल हम कांके रोड स्थित कोयला विहार संस्कृति अपार्टमेंट गए. वहां लोगों से चर्चा की और आगे से पॉलिथीन प्रयोग ना करने की शपथ दिलाई. सबने ही कहा कि वो अब पॉलिथीन का प्रयोग नहीं ...

आपसे तीन जरूरी बातें शेयर करना चाहती हूं... 1 Jul 2013 | 04:10 pm

प्रिय मित्रों, आज आपसे तीन बातें शेयर करनी हैं. कल का दिन मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा. मैं बहुत समय से पॉलिथीन के विरोध में मुहिम चलाना चाहती थी लेकिन उत्तराखंड की त्रासदी ने मुझे ये कदम उठाने को  मज...

इसी का नाम जिंदगी है.... 28 May 2013 | 01:32 pm

इसी का नाम जिंदगी है ये हमेशा एक-सी नहीं रहती दिन खो जाता है शाम में, रात तक सुबह नहीं पलती जहां के आगे मिलेंगे और भी जहां, खोजो तो सही कदम साथ बढ़े साथियों के तो दूरी नहीं खलती अक्सर थम जाते हैं ...

बहादुर अनामिका को सलाम 29 Dec 2012 | 05:28 pm

आज एक दुष्कर्म पीड़ित की मौत नहीं हुई मौत हुई है एक सभ्यता की एक संस्कृति की नारी की अस्मिता की हर मां मरी है बेवक्त हर बहन का आंचल हुआ है तार-तार दफन हुई हैं भावनाएं वासना के कौफीन में सारी चिरैया उड...

कविता-मकरंद की मिठास 28 Dec 2012 | 11:38 am

मुझसे किसी ने कहा कविता है पार्थिव शब्दों का संसार मैं नहीं मानती इन शब्दों में भरी है मकरंद की मिठास सुमन की गंध की महक प्रिया के श्रंगार का रोमांच भरता संसार प्रियतम के हाथों का स्पर्श इन ...

प्रयास.... 19 Dec 2012 | 12:11 pm

बहुत प्रयास किया सुखा सकूं गरीबी से झरते आंसू सुखाड़ ने सुखा दिए खेत-खलिहान सारे काश! झरने-सा बहता ये खारा पानी सींच सकता बंजर धरा को तो खिल उठती मुस्कुराहटों की फसल लहलहा उठती दूर क्षितिज तक...

बिखरी यादें... 6 Dec 2012 | 02:35 pm

समय ने आज फिर दिखाया दर्पण मुझे कितना बदल गया है चेहरा मेरा वो भाव वो मासूमियत वो अल्हड़पन वो बचपन कहीं छूट गया पीछे मैं अभी भी भाग रही थी उन्हीं संबंधों के पीछे जिनके सिरे बंधे हुए थे बचप...

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मीर तकी मीर, तख्ती

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