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पत्थरों के गाँव में ठहरने लगा है आईना ….. 26 Jun 2012 | 12:04 pm

तेरी गली से होकर गुजरने लगा है आईना तेरी हर आहट पर संवरने लगा है आईना . लटें संवार कर तुम चली गयी पल भर में जाने क्या सोचकर उछलने लगा है आईना . जाने कब, कहाँ, किस राह से तुम गुजरो हर राह में बे...

जब से पत्थर इतने रंगीले हो गए … 12 May 2012 | 03:02 am

आईनों के चेहरे पीले हो गए जब से पत्थर इतने रंगीले हो गए . आईना टूटकर बिखर जाता है जब भी खुद को आईने के सामने पाता है . आईना उनकी आँखों के ‘आईने’ में खुद को निहारता है, वे संवरने आयें इसस...

कथोपकथन हो गया ….. 29 Apr 2012 | 07:29 pm

नजर मिली नजर झुकी कथोपकथन हो गया मन बावरा न जाने किन ख्वाबों में खो गया . ‘पत्थर’ ने पत्थर मारा चोट लगी ‘पत्थर’ को पत्थरमय फिर आसमान हो गया ‘पत्थर’ भी भागे घर को . जुल्म को कभी सह मत ...

अब तक तो वो आई ना 17 Apr 2012 | 03:15 am

चलो मान लिया कि तुम नहीं दृष्टिहीन हो, पर फायदा क्या जब तुम्हारे अंदर दृष्टि ही न हो ************* बिछा रखा था जिसके लिये हर राह में आईना आस टूटने लगी है अब तक तो वो आई ना ***************...

तीन स्थितियां तीन शब्द चित्र 8 Apr 2012 | 04:51 am

धूप में भूखा-प्यासा जलता रहा सूरज फिर भी पूरे दिन चलता रहा सूरज . तुम्हारी चुप्पी के उस कथन को सुनता रहा मैं. सुन न पाया तदुपरांत जो कुछ कहती रही तुम. . कार्यालय के पिछली गेट से निकल गए...

अब तक संचित वह क्षण .. 18 Jun 2011 | 03:14 am

तब जबकि तुम्हारे काँपते हाथों पर मैनें अनायास रख दिया था हाथ; और फिर क्षण भर के लिये प्रकम्पित हो गया था सम्पूर्ण कायनात, परिलक्षित हुआ चिर संचित सम्पूर्ण चेतना का अवचेतित स्वरूप अवशोषित ...

लाईन सीधी हो गई ... 16 Jun 2011 | 11:33 am

वह लाईन के कुछ हिस्से को मिटाता और फिर उसे सीधी करने का प्रयास करता. बारम्बार कोशिशों के बावजूद वह सफल नहीं हो पाया. हाँ ! इस प्रयास में लाईन और टेढ़ी होती जा रही थी. अंत में वह खीज गया और पूरी की पूरी...

हमके तू बतावा ... (भोजपुरी) 10 Jun 2011 | 03:57 am

देसवा क हमरे समाचार हो हमके तू बतावा फागुन क ठंडी बयार हो हमके तू बतावा . कउने खेतवा में चना बोआयल कइसे बगइचा से लकड़ी ढोआयल केतना भयल बनिया क उधार हो हमके तू बतावा फागुन क ठंडी बयार हो हमके तू बतावा...

उस ख़त को पढ़ लेने के बाद .... 1 Jun 2011 | 05:08 pm

जेठ की दुपहरी में आंचल लहराकर तुमने एक छत लिखा है; मिल गया आज मेरे नाम जो तुमने ख़त लिखा है, एहसासों के मुँह पर उंगली रख मना कर दिया कुछ बोलने से; डायरी में सहेज कर ख़ुद को मना कर दिया खत खोल...

पहचान – The identity 27 Apr 2011 | 11:36 am

खुद की पहचान के लिये उनसे पहचान बनाते-बनाते मैनें उन्हें पहचान लिया, और फिर - पहचान बनते-बनते रह गई. .. कई बार उन्होनें पुरजोर कोशिश की मुझसे पहचान बनाने की, पर जैसे ही मुझे पहचाना पहचान बन...

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अंतर्कथा kya hai, अंतर्कथा kya hai?, लघु कथा

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